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अनुभूति में पराशर गौड़ की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह

हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार

संकलन में-
नया साल- नूतन वर्ष

सज़ा

एक
आतंकवादी पकड़ा गया
कानून के फन्दौ में जकड़ा गया
कानून ज्ञाताओं की
आपतकालीन बैठक बैठ गई
निर्णय लिया गया
इसको ऐसी सजा दी जाय
जो आजतक किसी को न दी गई
एक बोला... बिलकुल सही
इसकी सज्जा तो
अलग से होनी ही चाहिए
लेकिन एक काम करें
सजा सुनाने से पहले इसे...
उलटा लटका कर छिहत्तर मारें
तभी कोई चिल्लाया...
अरे नहीं नहीं... ऐसा नहीं
ये सब भेद खोलेगा
इसकी इसमें वो दो
मारे दर्द के सब उगलेगा
कोई कह रहा था
ये करो वो करो
ऐसा करो वैसा करो
चारो ओर शोर हो रहा था
सुन सुन कर ये सब वो चोर
मंद मंद मुस्कुरा रहा था
क्यों कि ...
ये सारी सजाएँ तो वो
ट्रैनिंग के दौरान झेल चुका था
मैं
एक कोने में बैठा बैठा
सब सुन रहा था
शोर थमा ...मैं बोला
देखिये आप सब तो कानून के ज्ञाता है
कौन सी सजा कब देनी है
ये सब जानते है
मेरे पास एक नई सजा है
अगर आप सुने ध्यान दे
ये पहला केस और
पहला आंतकवादी होगा
जो इस सजा के तहत मरेगा
आप कुछ न करें
इस आतंकवादी को कुछ दिनो के लिए
किसी कवि के यहाँ भेज दें
रोज सुन सुनकर उसकी कविताएँ
कान इसके फूटेंगे फेफड़े जलेंगे
दिल टूटेगा ...
और तड़प तड़प कर
ये मर जायेगा
अचानक
आतंकवादी चिल्लाया
मुझपे रहम करो
मैं सब उगल दूँगा
कहो तो उल्टा बम
अपने ही देश पर फेक दूँगा
आप जो चाहें सजा दें
छिहत्तर मारे या काटें
लेकिन खुदा के वास्ते मुझे
किसी कवि के यहाँ न भेजें
ये सरासर बेइन्साफी होगी
मैं यू. एन. ओ. में जाऊँगा
ये मेरे लिये ...
डबल सजा होगी
वहाँ जाकर मैं तो मरूँगा ही मरूँगा
साथ मेरी नानी भी मर जायेगी


२४ मार्च २००४

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