अनुभूति में
पराशर गौड़ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
स़ज़ा
सैनिक का आग्रह
हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार
संकलन में-
नया साल-
नूतन वर्ष
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बहस
जूते और चप्पलों में
हो गई बहस
छिड़ गई लड़ाई
लगे करने
अपनी अपनी बड़ाई।
चप्पले बोली...
यद्यपि दिखने में हम
कोमल नाजुक कमजोर है
पर... हमारे किस्से
जगत मशहूर है।
आम आदमी से लेकर
मंत्री सन्तरी नेता हमें
अपने साथ रखने में मजबूर है
और नेताजी...
नेता जी...तो हमें बड़े प्यार से
दुलारते है पुच्चकारते है
बड़े सम्मान के साथ हमे
पार्लियामेंट तक ले जाते हैं।
ऐसा नहीं हम भी...
आडे वक्त उनके काम आते हैं।
टेलीविजन और अखबारो में
आये दिन हमारी तस्वीरे छप्पती है
जब जब हम...पार्लियामेंट में
एक दूसरे पर बरसती है।
चप्पले जूते से बोली
है तुम्हारा ऐसा कोई किस्सा
जो तुमने कभी
पार्लियामेंट में लिया हो हिस्सा।
जूता बोला ...बस्स
तुममें यही खराबी है
बात को पेट में पच्चा नहीं पाती
यों ही चप्पड चप्पड करती रहती
सुनो ...
चाहे हम रबड़ के हो या चाँदी के
सारे मुरीद है हमारे यहाँ से वहाँ तक के
जब जब मैं चलता हूँ या चलूँगा
अच्छे अच्छो के मूह बंद हो जाएँगे
इसीलिए तभी तो लोग कहते हैं
यार
चाँदी का मरो तो सब काम हो जाएँगे।
पटवारी से लेकर व्यापारी तक
सिपाही से लेकर मंत्री तक
सब हमारे कर्जदार है
तभी तो कहते है ...यार
जूता बड़ा दमदार है
और वो भी . .. .
चाँदी का हो तो फिर क्या बात है।
रही हिस्से किस्से की बात
अब तुम तमाशा देखना देखोगे
आज के बाद संसद मे
तुम नहीं ...हमी हम चलेंगे |