अनुभूति में
पराशर गौड़ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह
हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार
संकलन में-
नया साल-
नूतन वर्ष
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गोष्ठी
एक कवि गोष्ठी में
पहुँचा और देखा
न तो कोई
दाद देने वाला था
न ही कोई श्रोता थे
ले देकर हम
पाँच कवि थे।
रसम अदायगी हुई
एक बने अध्यक्ष
एक बना उपाघ्यक्ष
दो बने संचालक
रह गया मैं।
सोचता रहा
बात बन जायेगी
मुझे भी जिदंगी में आज
कोई ना कोई पोस्ट मिल जाएगी
मै अपने नाम की
घोषणा का इंतजार करता रहा
टुकुर–टुकुर उनकी ओर देखता रहा
अन्त में मैं बोला
भाई हमें भी कुछ बनाएँ
वे सब एक साथ चिलाए
अरे भाई
कोई ताली बजाने वाला भी
तो चाहिए।
२४ मार्च २००४ |