अनुभूति में
पराशर गौड़ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह
हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार
संकलन में-
नया साल-
नूतन वर्ष
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अपनी सुना गया
एक
सज्जन ने
मेरे पास आकर पूछा
भाई खाली हो
मै बोला नही …तो
क्यों?
मै तुम्हें
अपनी कविता सुनाऊँगा
खाने को जो बोल खिलवाऊँगा
पीने को जो बोले पिलवाऊँगा
मैने सोचा…फस्सा
इसे नही पत्ता
मै भी कवि हूँ
करता हूँ … कविता
और सुनने वालों की तलाश में
तो मैं भी
गाँव गाँव गली गली
शहर शहर भटका और भटकूँगा
तेरी कबिता सुनूँ या न सुन
पर बच्चू……आज तुझे
अपनी सुना के रहूँगा
मैने कहा मान्यवर
अगर आप अन्यथा न लें
तो पहले हमारी सुनें
चौक कर बोले
हे भाई… कहीं
आप भी कवि तो नही
मै बोला…मैं और कवि
जी नहीं नहीं
ले कर सन्तोष की साँस
वे बोले…फरमाएँ
अरे भाई जो जी मे आये
सुनाएँ सुनाएँ
उठा कर समय का फायदा
जेब से निकाल
कविताओ का पुलंदा
कुछ स्वर में कुछ बेसुर में
कुछ गुनगुन कर कुछ धुन में
एक नहीं दो नहीं तीन नहीं चार नहीं
आठ दस कह डालीं
हम बोले…
मान्यवर कहो कैसी रही
वे बोले… क्या बात है
भाई बहुत खूब
मै बोला
आगर आप अन्यथा न लें
तो चलूँ
पकड कर मेरे कुर्ते का पल्लू
वो बोला…
सुना कर अपनी कविता गजल धुन
कह रहा है कि चलूँ
कहाँ जा रहा है बच्चू…
बैठ यहाँ
अब्ब हमारी सुन । |