अनुभूति में
पराशर गौड़ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह
हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार
संकलन में-
नया साल-
नूतन वर्ष
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चाह
ओ पाथिक मुझको
वो पथ दिखला
जो सीधा रण को जाता हो ।
लौटूँ जीवित या मृत जहाँ से
ध्यान रहे तिरंगा मेरा
मेरे साथ सदा हो।
एक ने जन्म दिया
एक ने पाला मुझको
और चढ़ाते फूल तुझे
मै शीश चढ़ाऊँ तुझको।
एक ने दूध दिया
एक ने दी बोली
इन दोनों की खातिर
सीने पर झेलूँगा गोली
पीठ दिखाऊँ न कभी रण में
जो तेरा वरदहस्त
मेरे साथ सदा हो।
मुझे न नेहरू बनना है ना गाँधी
मै तो बनूँगा देश का सच्चा सैनिक साथी
रण में मरूँ तो जीवन अपना
धन्य मै समझूँगा
लौटूँ जीवित रण से अगर
फिर रण में जूझूँगा
विजय पताका लेकर लौटूँ
जो तेरा आशीर्वाद
मेरे साथ सदा हो।
चाह नही मुझको
मै अखबारों की सुर्खी बनूँ
चाह नही मुझको
मै संसद की बहस बनूँ
और चाह नही मुझको
मै तमगों से लादा जाऊँ
वीरगति गर प्राप्त हुई तो
एक सैनिक की मौत मरूँ
चाह है तो मरते मरते
मेरे अधरों पर जयहिंद का नारा
मेरे साथ सदा हो।
२४ मार्च २००४ |