मेरा मन
सहसा चौंक गया! मेरा मन
कर कर करती रुकी जब मोटर
पहियों के गूंज ने उठा दिया सर
जो अब तक झुका था संभाले
अतीत का गठ्ठर
मंै निर्णय न कर पाया
क्यों तीव्र हुई धड़कन
क्या उन सपनों के?
या उन अपनों के?
खोने का था ड़र
ओह! उठा यह कैसा पागलपन
सहसा चौंक गया! मेरा मन
मैं तो था दूर खड़ा
गंभीर मनको लगा हथौड़ा
प्रतिदिन यहाँ चलता है यातायात
आज करकराहट में क्या है नयी बात?
मुझे लगा कोई छीन रहा है मुझसे
मेरे कविता का छंद
सहसा चौंक गया! मेरा मन
१ फरवरी २००६ |