अनुभूति में
गौतम
सचदेव की रचनाएँ-
लंबी गजल में
ब्रिटिश दुकानें, बाज़ार और
व्यवसाय
नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से
अंजुमन में-
अँधेरे
बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल
बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार
लंबी
ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग
दोहों में-
नया नीति शतक
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ब्रिटिश दुकानें,
बाज़ार और व्यवसाय
ताज़गी के साथ मंडी खिलखिलाई
रोज़ दुल्हन की तरह जाए सजाई
हुस्न से व्यापार में बढ़ती कमाई
लड़कियाँ हर माल में पड़तीं दिखाई
बंद शीशों में खड़ी वे मुस्कुराएँ
जाएँगी नज़रें न दर्शक से हटाई
लीजिये चश्मे नज़र या फ़ैशनों के
आँख हो कमज़ोर या न दे सुझाई
रूप मुखड़ा रंग सिर हुलिया बदल दें
बाल आँखें नाक नख चमकाएँ नाई
इत्र साबुन क्रीम पौडर की दुकाऩें
वे करें शृंगार चेहरे पर लिपाई
डॉक्टर लेंगे मगर कुछ दाम ज़्यादा
दाँत की जब वे करें भर्ती-सफ़ाई
बीज पौधे फूल ले जाकर सजाएँ
कीजिये खुरपी कुदाली से गुड़ाई
घर बगीचे के लिये औज़ार ढेरों
खाद डालें घास की कर लें कटाई
रंग रोग़न कील काँटे खूँटियाँ लें
या करें ‘रोलर’ ब्रशों से खुद पुताई।। १०
२
पुस्तकों की ख़ूब सुन्दर हैं दुकानें
कुछ नुमाइश-सी उन्होंने है लगाई
साज-सज्जा पुस्तकालय-सी दिखेगी
लेखकों से वे कराएँ आशनाई
भूख है तो कीजिए अब पेट पूजा
चिप्स बर्गर सैंडविच या लें मिठाई
केक बिस्कुट पेस्टी या पावरोटी
रोज़ ये ताज़ा बनाते नानबाई
नान डोसा लें समोसे या पकौड़े
चाट भाजी पापड़ी या रसमलाई
खाइये गरमागरम छोले भठूरे
या पराँठे साग रोटी घर-बनाई
रेस्तराँ हैं अनगिनत ‘इंडियन तंदूरी’
धूम इनके चिकन टिक्के ने मचाई
हों भले ही दाल मक्खनी में मसाले
मिर्च तक अंग्रेज़ को अब तो सुहाई
छौंक लहसुन प्याज़ हल्दी का लगा हो
नाक-भौं जाये न गोरों से चढ़ाई
दाल चावल शुद्ध बेसन और आटा
तेल मिलते हैं सभी सिरका खटाई।। २०
३
शहद शर्बत खुश्क मेवे या मुरब्बे
लीजिये तुलसी हरड़ देसी दवाई
शहर जैसी सब्जियों की हैं दुकानें
बेचतीं बैंगन घिया गुच्छी सुखाई
मिल रहे कटहल तरोई और अरवी
सोयँ धनिया साग मेथी घर-उगाई
देश के सब ज़ायके मिलते यहाँ हैं
शुद्ध चीज़ें खाइये करके बड़ाई
मक्खियाँ मारें भले बाक़ी दुकानें
ये सभी करतीं मगर चोखी कमाई
एक लघु भारत यहाँ जैसे बसा है
क्रांति-सी कर रहे हैं एशियाई
साड़ियाँ घघरे कमीज़ें और कुर्ते
शेरवानी चोलियाँ पगड़ी तलाई
चादरें तकिये व गद्दे हर तरह के
लीजिये रेशों या पंखों की रज़ाई
‘ब्रांड’ के कपड़े मिलेंगे बहुत महँगे
ले रहे शौक़ीन फिर भी कर बड़ाई
हर तरह के वस्त्र फ़ैशनदार सादे
भीड़ ने रौनक़ सभी की है बढ़ाई।। ३०
४
हर जगह मिल जाएँ मदिरा की दुकानें
बोतलें हर ब्रांड की दिखतीं सजाई
क़ैद सबमें ज़िंदगी की मस्तियाँ हैं
झूमते हैं लोग जब जाए पिलाई
जाएँ कितने चाव से सब लोग पब में
हमप्याला बन रहे गप्पी चवाई
ख़ूब बतियाते वहाँ बैठे पियक्क्ड़
कोई बनता शेर तो कोई बिलाई
यार मिलते जोश से मदिरालयों में
भूलकर क्या है बुराई या भलाई
ज़िंदगी के रोग चिन्ता जब सताएँ
लोग दारू को समझते हैं दवाई
दुख नहीं पैसे लुटाकर भी किसी को
अन्त में सुधबुध मगर कुछ ने गँवाई
शौक़ से पहले पियें जिस मुँहलगी को
बाद में पी जाए वह उनको अताई
साथ मदिरा के मिलें खाने पबों में
कुछ अघाते और कुछ करते लड़ाई
वे बने हैं राजनीति के अखाड़े
लीडरों की कम नहीं होती धुनाई।। ४०
५
बेचते छिपकर कहीं मादक दवाएँ
तस्करों की बढ़ रही काली कमाई
शौक़ से वे गोलियाँ चाक़ू चलाएँ
सीखते उनसे युवा हर इक बुराई
मंडियों में कुछ जुआघर खुल गये हैं
नाम बुकमेकर पड़े उनका दिखाई
लॉटरी घुड़दौड़ कुत्तादौड़ बिंगो
दाम से होती मुकद्दर आज़माई
चाहते पल में सभी धनवान होना
जीभ पैसों के लिये हर लपलपायी
योजनाओं के लिये पैसे बटोरे
लॉटरी सरकार ने ख़ुद भी चलाई
चल रहीं गहनों व घड़ियों की दुकानें
ख़ूब गिरवी माल से होती कमाई
गिन्नियाँ बिस्कुट नवल हीरे नगीने
लीजिये कंठी अँगूठी मनलुभाई
देखिये जूते उधर पर्दे इधर हैं
स्टोर इक बढ़िया लगे दूजा सवाई
कुछ दुकानें सिर्फ़ ‘ट्रेनर’ बेचती हैं
बेचतीं कुछ बैग ट्रॉली पर्स टाई।। ५०
६
कम न टेलिफ़ोन की माहिर दुकानें
भीड़ उनमें हर समय पड़ती दिखाई
पास बिकते ढेर मछली माँस अंडे
एप्रन पहने खड़े दिखते कसाई
फ़िक्र बदबू की किसी को भी नहीं है
मानते अंडा है शाकाहार भाई
कुछ दुकानें शोक में देतीं सहारा
वे कराएँ स्वर्गवासी की विदाई
दाह के झंझट झमेले सरल कर दें
सब मँगा दें फूल पंडित और नाई
हर तरह की आख़िरी रस्में कराएँ
पाठ गीता का हवन पूजा सफ़ाई
लीजिये ताबूत इनसे हर तरह के
क्रॉस पत्थर कफ़्न टिकठी सब सजाई
हो यहूदी या किरस्तानी कि मुस्लिम
दफ़्न करने की कराएँ कार्रवाई
कुछ दुकानें शादियाँ रिश्ते कराएँ
ढूँढ़ दें दूल्हा बहू या घरजमाई
क्यों अकेले आप मन मारे पड़े हैं
मिल रहे जब यार साथी या लुगाई ६०
७
कुछ दुकानें मर्द मर्दों से मिलाएँ
नार को नारी दिलाएँ बिन सगाई
यौन परमानन्द में डूबे सभी हैं
बन गई है ऐश जीवन की सचाई
कीजिये ‘डेटिंग’ किसी से भी मज़े से
हो युवा विधवा विधुर अपनी पराई
पादरी मुल्ला न पंडित रोक पाते
किस लिये होगी भला फिर जगहँसाई
इश्क़ में क़ानून बन्धन कुछ न चलते
यौन रिश्तों ने बढ़ा दी आशनाई
ज़िंदगी सौदा बदन का हो गई है
बिक रही ईमानदारी बेवफ़ाई
रात को कुछ इत्र की बन शीशियों-सी
लड़कियाँ फुटपाथ पर पड़तीं दिखाई
चुस्त अधनंगे बदन से वे बुलाएँ
मुस्कुराकर आँख मारें बिन लजाई
कार लेकर आएँ आशिक़ यार ग्राहक
चल पड़ें वे साथ उनके जगमगाई
खा रहीं सिक्के उधर वाशिंग मशीनें
घरघराती घूमती करतीं सफ़ाई।। ७०
८
मैल कपड़ों की छुड़ाने में लगी हैं
कौन अब करता फिरे दिल की धुलाई
कुछ ग़ुसलख़ाने रसोई की दुकानें
रेडियेटर नल व चूल्हे दें दिखाई
मिल रहे सामान घर के हर तरह के
कीजिये उनसे सजावट या सफ़ाई
मेज़ कुर्सी शेल्फ़ नव अलमारियाँ हैं
काँच की या काठ की मिलती तिपाई
पास बिजली बल्ब के भंडार भी हैं
जल रहे हंडे शमा भी जगमागाई
रोशनी से ज़िंदगी में रंग आये
ख़ूबसूरत हो गई है बेहयाई
‘चैरिटी’ संस्थाओं की काफ़ी दुकानें
दान की चीज़ों से करती हैं कमाई
कुछ दुकानें आपको चालू रखेंगी
फ़िट करें टायर हवा की भी भराई
ज़िंदगी सबकी वही दौड़ा रही हैं
और निर्भर भी उन्होंने ही बनाई
साफ़-सुथरे हों नरम सब फ़र्श घर के
लीजिये कालीन ‘वाइनल’ या चटाई।। ८०
९
फ़र्श चिकना काठ का या टाइलों का
इन दुकानों में पड़े वह भी दिखाई
आइये देखें वकीलों की दुकानें
वे अदालत में दिया करतीं सफ़ाई
काम उनका है मुसीबत से बचाना
वे मिटा दें या बढ़ा दें हर लड़ाई
ज़िंदगी के सब सुखद साधन मिलेंगे
पर मिलें मुश्किल से दर्ज़ी चारपाई
फ़ाउंटेनपेन टाइपराइटर के रिबन भी
मिल न पायेगी कहीं पर रोशनाई
टेम्स के तट दक्षिणी की दें दुकानें
ताज़गी ठंडक ज़रा भीगी ललाई
लोग बैठे खा रहे या प्रेम करते
चूमता लड़का व लड़की खिलखिलाई
फ़िल्म नाटक खेल मेला सब वहाँ हैं
कुछ ठुमकती साथ तमसा हरहराई
साँवली-सी कुछ नमी तन को छुएगी
स्निग्ध लगती बादलों की नित चढ़ाई
सो रहीं किरणें वहाँ आकर सुबह की
रोशनी है बाग़ में ज्यों मैगपाई।। ९०
१०
गाड़ियाँ चलतीं शहर के पेट दिल में
डेढ़ दो सौ फ़ुट तले उनकी रसाई
बेख़बर ऊपर रहे दुनिया नगर की
‘ट्यूब’ नीचे हर मिनट है दनदनाई
‘लिफ़्ट एलिवेटरों’ की रौनक़ें हैं
पास लोगों ने दुकानें हैं जमाई
मोटरों में बिक रही है चाय कॉफ़ी
पीत्ज़ा भजिया समोसे ‘फ़्रेंच फ़्राई’
‘सूप’ मेवे सब्ज़ियाँ फल नान पित्ते
चाभियाँ ताले मसाले नोन-राई
कुछ मैकैनिक मोटरों से काम करते
कुछ न देते टैक्स कर मोटी कमाई
पास हैं औज़ार उनके सब तरह के
फ़ोन करते ही पहुँचते ले निहाई
सब दुकानों पर शटर बढ़िया लगे है
बोर्डों ने नाम शोभा है बढ़ाई
लिफ़्ट एलिवेटरों वाली दुकानें
लोग करते सीढ़ियों से कम चढ़ाई
कुछ दुकानें हैं बनी मीनार जैसी
मंज़िलें उनमें कई होतीं छवाई।।१००
११
एक बिल्डिंग ही लगे संसार पूरा
हर ज़रूरत की पड़ें चीज़ें दिखाई
लीजिये ठंडा गरम भोजन वहाँ पर
टॉयलेट में भी दिखे अच्छी सफ़ाई
लोग धंधे कुछ घरों से भी चलाते
कुछ करें गैरेज से बिक्री कमाई
देखिये ‘हैरड्ज़’ की दुनिया अनोखी
सब दुकानों से अलग वह जगमगाई
वस्तुएँ संसार की मिलतीं वहाँ पर
हुक्म से भी आपके जाएँ मँगाई
माल उस जैसा नहीं शायद कहीं पर
देखिए ग्राहक वहाँ पर ‘टॉप हाई’
शेष दोहे सोरठे या हाइकु हैं
वह अकेली है दुकानों में रुबाई
सर्दियों में सब दुकानें उष्ण रहतीं
गरमियों में कुछ लगें ज्यों तमतमाई
बारिशों में लोग चीज़ें कम ख़रीदें
धूप के दिन भीड़ हो जाए सवाई
लोग कुछ आते नज़ारा देखने को
रोज़ ही ‘शॉपिंग’ किसी को खींच लाई ११०
१२
सेल हो तो लोग ऐसे दौड़ पड़ते
मिल रही हो मुफ़्त में मानो ख़ुदाई
कैमरे शीशे दुकानों में लगे हैं
चोर उनमें एकदम पड़ते दिखाई
चोर से चेतावनी वाले अलारम
बज उठें देने लगें फ़ौरन दुहाई
सब उठाईगीर हैं ऊँचे खिलाड़ी
रोज़ जाती हैं कई चीज़ें चुराई
लूटते चाकू छुरा ले कुछ लुटेरे
पीटते या मारते हैं आततायी
सब दुकानें भोग को देतीं बढ़ावा
साथ ही कुछ में सजे राधा-कन्हाई
शिव विनायक और गौरी भी विराजें
संग उनके लक्ष्मी या शेषशायी
मस्जिदें बाज़ार में सुन्दर खड़ी हैं
गुरुद्वारों ने अलग शोभा दिखाई
रोज़ लंगर में करें स्वागत सभी का
वे करें सब मुफ़्त में खाना-खिलाई
अनबिकी बासी पुरानी और जूठी
चीज़ कूड़ेदान में जाती फिंकाई।। १२०
१३
रह नहीं सकता ब्रिटेन में कोई भूखा
भूख कूड़ेदान से उसने मिटाई
सूअरों के वास्ते खाने बनाते
लोग कुछ करते फिरें जूठन-हटाई
और भी धंधे ब्रितानी हैं हज़ारों
सब गिनाने को नहीं पुस्तक बनाई
ये ब्रिटिश व्यवसाय की हैं कुछ मिसालें
इस तरह अंग्रेज़ करते हैं कमाई
चीज़ गारंटीशुदा वे बेचते हैं
कीजिये वापस बिना संकोच साई
जानते व्यापार के गुर वे चतुर हैं
बात करते हैं नहीं नक़ली हवाई
जेब धोखेबाज़ बनकर वे न भरते
सब खरीदारों से बरतें वे सचाई
चाहिये विश्वास उनको ग्राहकों का
ताकि आगे भी रहे होती कमाई
देखिये पर लीजिये कुछ भी न चाहे
कोई ग्राहक से नहीं बरते रुखाई
मूलतः व्यापार से इंग्लैंड ने थी
हर जगह पर सल्तनत अपनी बढ़ाई।। १३०
१४
वह जगत को आज भी हथियार बेचे
धूम उसके ही जहाज़ों ने मचाई
राजधानी वित्त की लंदन बना है
गिन्नियों की शान से होती ढलाई
मीडिया का और न सिरमौर कोई
टाँग कुल संसार में उसने अड़ाई
अन्य देशों की मदद करके बढ़ाये
साख बिक्री और यूँ अपनी कमाई
एक वामन देश ने कुछ देख ‘गौतम’
निज पगों में किस तरह दुनिया झुकाई।। १३५
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