अनुभूति में
गौतम
सचदेव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से
अंजुमन में-
अँधेरे
बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल
बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार
लंबी
ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग
दोहों में-
नया नीति शतक
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दबे पाँव
दबे पाँव जब जी चाहे वह
आई है
जिसे मिली उसने झट जान गँवाई है
कौन बताये रंग-रूप सूरत उसकी
आँख देखने से पहले पथराई है
हवा आग पानी मिट्टी आकाश नहीं
ठोस तरल न गैस न वह परछाईं है
बिना बुलाये ख़ुद ही वह मेहमान बने
मेज़बान के प्राणों पर बन आई है
चिर निद्रा का रोग लगा दे वह ऐसा
पास किसी के जिसकी नहीं दवाई है
कोई कहते उसे कि है मर्ज़ी रब की
कोई कहते क़िस्मत की निठुराई है
कुआँ समंदर आग सड़क या बीमारी
ये कुछ रस्ते हैं जिनसे वह आई है
कभी हँसाते सुख दुख कभी रुला जाते
मौत-ज़िंदगी की यह हाथापाई है
अमर आत्मा क़ैद हो गई मिट्टी में
क्या वह शापित है या वह पगलाई है
जीवन है ज्यों रेत सरकना मुट्ठी से
उम्र कहें जिसको रपटीली काई है
सिर्फ़ बिछाना बिस्तर है साँसें चलना
या सोने से पहले की अंगड़ाई है
लाभ-हानि हैं पत्ते सुख-दुख फल जैसे
यह जीवन भी एक अजब अमराई है
जनम नहीं अणुओं का जुड़ना अँकुराना
मरण नहीं अणुओं की सिर्फ़ जुदाई है
अमृत पाने की ख़्वाहिश तो सबकी है
ख़बर न अगले पल की रामदुहाई है
जनम हुआ जिसका मरना होगा उसको
यह कैसा बन्धन कैसी सच्चाई है
कोई कभी न खोल सका इस गुत्थी को
मौत छुड़ाये दुख से या दुखदायी है
बरसेगी ‘गौतम’ पर क्या बनकर जाने
कर्मों की बदली काली-सी छाई है
१७ अक्तूबर २०११
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