अनुभूति में
गौतम
सचदेव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से
अंजुमन में-
अँधेरे
बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल
बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार
लंबी
ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग
दोहों में-
नया नीति शतक
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सच मुखों का यार
सच मुखों का यार बन झूठा हुआ है
चूमने से फूल यह जूठा हुआ है
बिंध न पाया जो कहो पत्थर न उसको
बिंध गया जो वह नहीं टूटा हुआ है
प्यार का पीपल दिलों में कब दबा है
तोड़कर दीवार भी फूटा हुआ है
बाँधता बाँधे बिना हर आदमी को
मोह दुनिया का बना खूँटा हुआ है
दौलतें हीरे ख़ज़ाने महल इतने
माल क्या इस मुल्क ने लूटा हुआ है
मिल गया परदेस में भी देश अपना
पर लगे ज्यों दिल वहीं छूटा हुआ है
रास्ता मज़दूर ने यह क्या बनाया
पिस गया ख़ुद और यह कूटा हुआ है
आदमी क्या एक भी साबुत नहीं है
देखिये जिसको वही टूटा हुआ है
और किससे आदमी उम्मीद रक्खे
देवता अपना अगर रूठा हुआ है
झूठ की ‘गौतम’ करे कैसे बुराई
आज तो सच भी बड़ा झूठा हुआ है
२० दिसंबर २०१०
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