अनुभूति में
गौतम
सचदेव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से
अंजुमन में-
अँधेरे
बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल
बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार
लंबी
ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग
दोहों में-
नया नीति शतक
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यह कैसा संन्यास
यह कैसा संन्यास रे जोगी
निशि-दिन भोग-विलास रे जोगी
पाखंडों की चादर ओढ़े
धर्म हुए बकवास रे जोगी
मुजरिम ये उजले कपड़ों में
जाएँ न कारावास रे जोगी
ऊपर मठ में भजन आरती
नीचे है रनिवास रे जोगी
क़ातिल को जन्नत मिलती है
ख़ूनी यह विश्वास रे जोगी
हत्यारा मानव मानव का
यह भी है इतिहास रे जोगी
जोग रमाये जा पर जग का
मत कर सत्यानास रे जोगी
२० दिसंबर २०१०
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