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अनुभूति में गौतम सचदेव की रचनाएँ-

लंबी गजल में
ब्रिटिश दुकानें, बाज़ार और व्यवसाय

नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से

अंजुमन में-
अँधेरे बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार

लंबी ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग

दोहों में-
नया नीति शतक

 

दिल्ली के सौ रंग

पैसे शिव शंकर दिल्ली के
पैसे नट नागर दिल्ली के

पैसों के बल पर दिखते हैं
बदसूरत सुन्दर दिल्ली के

बड़े-बड़े तक खा जाते हैं
रोज़ नये चक्कर दिल्ली के

खोटे भी असली दिखते हैं
अद्भुत जादूगर दिल्ली के

सुख-दुख बिकते थोक भाव से
प्राणी हैं फुटकर दिल्ली के

सौदे तन मन जान प्यार के
करते सौदागर दिल्ली के

सफ़र मुसाफ़िर कट जाते हैं
सड़कें हैं खंजर दिल्ली के

जीवन मरण टूटना बनना
होता ठेके पर दिल्ली के

सेहत अस्पताल महँगे हैं
सस्ते मुर्दाघर दिल्ली के

महल हवेली क़िले मक़बरे
दिल में हैं पत्थर दिल्ली के 10

चमक उड़े जब सँगमर्मर की
मलबा बनते घर दिल्ली के

लाल क़िला या जामा मस्जिद
ज़ख़्मों पर टिंचर दिल्ली के

घाट लाट मन्दिर गुरुद्वारे
बँटे हुए गुरुवर दिल्ली के

गंदे उजले नये पुराने
रूप अलग आकर दिल्ली के

इतिहासों की रूहों में हैं
दबे हुए ख़ंजर दिल्ली के

ख़ून बहाकर बिना बात के
चले गये बर्बर दिल्ली के

खाद पुराने वक़्तों की थी
नाम हुए उर्वर दिल्ली के

पल में बाँछें खिलती दिखतीं
पल में दीदे तर दिल्ली के

बुझा चाँदनी चौक बिराना
टूटे घंटाघर दिल्ली के

खंडहरों से होड़ लगाते
नये भवन जर्जर दिल्ली के 20

फुटपाथों गड्ढों कोनों में
लोग पड़े बेघर दिल्ली के

घूरे भी हैं घर कहलाते
महलों-से भी घर दिल्ली के

झोंपड़ियाँ छेदों से ढकते
चिथड़े हैं छप्पर दिल्ली के

हौज़ बावड़ी कुएँ नाम के
या हैं बस पोखर दिल्ली के

बरसें नख़रे कर-कर बूँदें
धूल सने सीकर दिल्ली के

नये-नये अंग्रेज़ आ गये
भूरे साहिब सर दिल्ली के

नाम अलग है अंग्रेज़ी में
बदले हैं अक्षर दिल्ली के

अंग्रेज़ी-भाषी अव्वल हैं
बाक़ी दो नम्बर दिल्ली के

गाँव खड़े बाहर दिल्ली के
गाँव घुसे अंदर दिल्ली के

जुते मशीनों में बैलों-से
खाते नित हंटर दिल्ली के 30

गंदे नालों के घाटों पर
शोभित नारी-नर दिल्ली के

पटी हुई कूड़े से यमुना
कीड़े हैं जलचर दिल्ली के

दीवारों पर मूत रहे सब
करते ज्यों कूकर दिल्ली के

हर नुक्कड़ पर ढेरों मिलते
पाख़ाने गोबर दिल्ली के

सड़कों पर गउओं की ख़ातिर
सजते कूड़ाघर दिल्ली के

मैली गंजी धोती चड्ढी
ये गलियाँ बिस्तर दिल्ली के

घायल घोड़े ढुलमुल ताँगे
वे भी थे जौहर दिल्ली के

मोटर-गाड़ी चलें कुचलते
नये चले रोलर दिल्ली के

गुंडे छीन-झपटकर दौड़ें
ये भी हैं बंदर दिल्ली के

मालिक सहमे रहें घरों में
मार न दें नौकर दिल्ली के 40

भीड़-भड़क्का इन्सानों का
या मक्खी-मच्छर दिल्ली के

फ़ाइल कुर्सी पर सो जाती
ऊँघ रहे अफ़्सर दिल्ली के

क़िस्मत के बिगड़े तालों-से
बिन चाभी दफ़्तर दिल्ली के

राहगीर के पाँव पकड़ते
मालिक हैं कूकर दिल्ली के

शासक हैं ख़ुद भूल-भुलैयाँ
भटक गये रहबर दिल्ली के

साँस दमे के रोगी जैसे
घुटते गुलमोहर दिल्ली के

पीपल बड़ जामुन रोते हैं
नीम दुखी कातर दिल्ली के

दौरे पर आयें जब नेता
हरे हुए तरुवर दिल्ली के

फूल गुलाबी नीले पीले
कहो इन्हें गूलर दिल्ली के

ऊँचा सिर करके फूले हैं
ख़ुशी-ख़ुशी सेमर दिल्ली के 50

काग़ज़ के फूलों पर मरते
ऐसे भी मधुकर दिल्ली के

काँटे बाग़ों की शोभा हैं
लहराते थूहर दिल्ली के

भूख-प्यास के मारे सूखे
बाग़ हुए बंजर दिल्ली के

आम चाहते हैं सब खाना
बोयें जो कीकर दिल्ली के

घिसट रहे पहिये कोढ़ी के
भिखमंगे पंचर दिल्ली के

लेटे जगह-जगह मुँह बाये
मगरमच्छ गह्वर दिल्ली के

अँधियारे ख़ूनी सन्नाटे
अनजाने हैं डर दिल्ली के

हर शहरी ने सिर पर लादे
चिन्ता के गट्ठर दिल्ली के

कुर्सी, पैसा, इज्ज़त, ताक़त
भोग रहे तस्कर दिल्ली के

उधड़े गोटा और किनारी
मैले हैं अस्तर दिल्ली के

छोड़ गई तन चुनरी साड़ी
शोभित अब जम्पर दिल्ली के

छीज रहे कितनों के कुर्ते
कलफ़ लगे कालर दिल्ली के

दही-पापड़ी चाट मसाले
चटख़ारे दीगर दिल्ली के

घी के हों या सड़े तेल के
बिक जाते घेवर दिल्ली के

बासी हुए पराठे बूढ़े
युवा नये बर्गर दिल्ली के

दी जिम ने क्या ख़ूब पटखनी
उठे न फिर मुग्दर दिल्ली के

ठीक अंग तक काट गिराते
ऐसे भी नश्तर दिल्ली के

कारतूस पिस्तौल सजाये
वैद मिलें हँस कर दिल्ली के

ख़ैर नहीं है बीमारी की
तन हैं ही नश्वर दिल्ली के

छोड़ गये अत्तार ठठेरे
बुनकर सिर धुनकर दिल्ली के 70

ज़री दरी भुखमरी ग़रीबी
बुनते कारीगर दिल्ली के

खादी में भगवे कपड़ों में
ख़ुश रहते अजगर दिल्ली के

सूखे पर्वत से बहते हैं
धोखे के निर्झर दिल्ली के

ओढ़ें मृगछाला के नीचे
ज़ालिम बाघम्बर दिल्ली के

नये तमाशे नई सियासत
करते बाज़ीगर दिल्ली के

साँप करें मानव को मोहित
बजवाते महुअर दिल्ली के

तेज़ करा लो क़ैंची जीभें
कहते सिकलीगर दिल्ली के

सोना बिगड़ी नीयत जैसा
खोटे ज़र-ज़ेवर दिल्ली के

खोज रहे सब ख़ुद को खोकर
भटक रहे दर-दर दिल्ली के

प्रश्न जनमते जितने उनसे
ज़्यादा हैं उत्तर दिल्ली के 80

नव शकुनि खोटे पाँसों से
लूट रहे अवसर दिल्ली के

अक़्लमंद कायर बन देखें
कहलाते जोकर दिल्ली के

पारा चढ़ता अलग तरह का
अलग चढ़ें तेवर दिल्ली के

ज़ालिम यह ससुराल कई की
रोते हैं नैहर दिल्ली के

बहुओं को बेरहम जलाते
सास ससुर या वर दिल्ली के

शर्मिंदा रातें दिखती हैं
तारे हैं धूसर दिल्ली के

ऋतुएँ धुएँ धूल की सखियाँ
धुँधलाये वासर दिल्ली के

शिक्षा की दूकानों जैसे
नये बहुत परिसर दिल्ली के

शोभित कहीं राम सीता कपि
पीछे दशकंधर दिल्ली के

भोंपू घंटे टीन कनस्तर
बजते रह-रहकर दिल्ली के 90

कहने को आज़ाद सभी हैं
सारे हैं निर्भर दिल्ली के

कितने दिल वाले बाहर से
शोषक दिल भीतर दिल्ली के

पानी-बिजली बिन चिड़िया-से
कट जाते हैं पर दिल्ली के

दुखी नहीं कम इन्सानों से
गरमी में कूलर दिल्ली के

एक्टर बनने चलीं बीवियाँ
अकड़ रहे शौहर दिल्ली के

धंधा ढंग पुराने उनके
हिजड़े हैं किन्नर दिल्ली के

फ़िल्मी भजन कीर्त्तन सारे
फ़िल्मी हैं सोहर दिल्ली के

वोट पोस्टर झंडे डंडे
अपने हैं कुंजर दिल्ली के

गोह नये चिपके गद्दी से
खेल रहे चौसर दिल्ली के

गिरगिट हैं कुर्सी के मालिक
कहलाते अनुचर दिल्ली के 100

नोट बिछाते निर्वाचन में
जीतें ताक़तवर दिल्ली के

ढोर मरें नित भूखे प्यासे
चारा जाते चर दिल्ली के


कई पीढ़ियाँ तरतीं उनकी
बनें मिनिस्टर गर दिल्ली के

दुनिया के नक़्शे पर चमकी
हाल वही बदतर दिल्ली के

लदे सभी दिन दान-वान के
चले गये औढर दिल्ली के

नहीं बिहारी के दोहों-से
अब वे कोमल शर दिल्ली के

आलम-शेख बिना दोहों में
केवल आडम्बर दिल्ली के

ग़ालिब ज़फ़र ज़ौक के जैसे
रहे नहीं शायर दिल्ली के

घनानंद की कविता जैसे
मीठे रहे न स्वर दिल्ली के

दादुर पावस ऋतु निज लाये
करते हैं टर-टर दिल्ली के 110

धोबी घाट मरे धो-धोकर
मिटे न धब्बे पर दिल्ली के

इच्छाओं-सी बढ़ती जाती
पैर नहीं मन्थर दिल्ली के

२३ अगस्त २०१०

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