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अनुभूति में गौतम सचदेव की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से

अंजुमन में-
अँधेरे बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार

लंबी ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग

दोहों में-
नया नीति शतक



किस लिये

किस लिये रहने लगी हिन्दी बहुत बीमार-सी
डाक्टर ने दी विदेशी चीज़ ख़ुश्बूदार-सी

यह चली कैसी हवा पत्ते सभी के झ़ड़ गये
माँग पेड़ों ने न की थी आपसी संहार-सी

प्यार से जिसको रखा दिल ने बनाया धड़कनें
भागकर आई पराई लग रही वह नार-सी

सोचता है भक्त देवी पर चढ़ाऊँ किस तरह
फूल देसी और माला प्यार के व्यापार-सी

खिड़कियाँ हैं बंद लेकिन साँस फिर भी चल रही
मिल रही उसको हवा बासी व बदबूदार-सी

सर्दियों में जाएँ कैसे धूप छत पर सेंकने
सीढ़ियाँ ख़ुद बन गईं किरचों भरी दीवार-सी

वह इमारत है पुरानी और सुनते हैं बड़ी
पर न जाने दिख रही है क्यों गिरी मीनार-सी

दूर भाषा के सभी संकट हुए इस ढंग से
पूँछ लम्बी की सभी ने अहम् के विस्तार-सी

माँ गँवारिन है हमारी बाप से बेटे कहें
मेम होती बोलती इंग्लिश फ़राटेदार-सी

बात इंग्लिश में करो ‘गौतम’ कि हिन्दी बच सके
अन्यथा हो जायेगी बेशर्म यह बाज़ार-सी

१७ अक्तूबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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