अनुभूति में
गौतम
सचदेव की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
किस लिये
दबे पाँव
रंग सुरों से
अंजुमन में-
अँधेरे
बहुत हैं
तन कुचला
नाम गंगा बदल दो
फूल
बेमतलब खिले
यह कैसा सन्यास
सच मुखों का यार
लंबी
ग़ज़ल-
दिल्ली के सौ रंग
दोहों में-
नया नीति शतक
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तन कुचला
तन कुचला लूटा माता को सबने खींचातानी में
लुटी-पिटी धरती दुखियारी डूब गई है पानी में
संग बहें मुर्दों के ज़िंदा घर टूटें ज्यों शीशे के
कौन मौत के मुँह से खीँचे लोगों को तुग़्यानी में
होड़ मची है कैसी जीवन और उमड़ती लहरों में
हाथ बढ़ाते रक्षक यम के दूत घसीटें पानी में
भूख ग़रीबी रोग मुसीबत चले साथ में लोगों के
छूटे कहाँ न जाने अपने इस दुनिया बेगानी में
कभी न कम होंगे दुनिया में मारे हुए मुसीबत के
ख़ुश रहती हैं तभी मक्खियाँ इन्सानी मेहमानी में
नहीं फ़रिश्तों से कम होते जान बचायें औरों की
दानव हैं ज़िंदा को धक्का दे देते जो पानी में
नहीं काम की वे सरकारें कुर्सी जो केवल देखें
धरे हाथ पर हाथ सोचती रहतीं आनाकानी में
भूखे तक रोटी पहुँचाने आ जाये शायद कोई
ज़िंदा है उम्मीद अभी तक उजड़े पाकिस्तानी में
रह सकती चेहरे की भाषा ‘गौतम’ कभी न अनबूझी
पीड़ा जब दिखने लगती सूरत जानी-अनजानी में
२० दिसंबर २०१०
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