अनुभूति में
प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ
प्रार्थना होता जीवन
भूख और सूरज
ममत्व से दूर
लौटती जनता
स्त्री
हमारा चाहने वाला
हां ना के बीच
गीतों में-
गूंजे कूक प्यार की
नागार्जुन के महाप्रयाण पर
पाकशाला का गीत
सपनों में सतपुड़ा
सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में-
इन दिनों
गर्भगृह तक
गांव आने पर
निश्चय ही वहां
महक
मां की याद
मिल बांटकर
सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा
हथेलियां |
|
सिसक रही झुरमुट में तितली
कितनी मैली कर दीं नदियाँ
नदियों को
नहलाए कौन?
कितनी कर दी हवा प्रदूषित
साफ़ इसे
करवाए कौन?
चीर हरण किरणों का करते
अणु आयुध के दुर्योधन
प्रक्षेपण की स्पर्धा को
देखें चाँद सितारे मौन
फटे वस्त्र ओज़ोन बदन के
इस चीर पहनाए कौन?
वात पित्त कफ तीनों से ही
शापित हुई जड़ी बूटी
वन की संचित विपुल संपदा
हिंसक हाथों ने लूटी
हरियाली के गीत सभी की -
वाणी में बैठाए कौन?
सिसक रही झुरमुट में तितली
पंछी डाल-डाल रोते
डगर-डगर तत्पर बहेलिए
जाल बिछाए ही होते
झूठ मारता जब तब मौसम
फसलों को सहलाए कौन?
24 जुलाई
2006
|