अनुभूति में
प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ
प्रार्थना होता जीवन
भूख और सूरज
ममत्व से दूर
लौटती जनता
स्त्री
हमारा चाहने वाला
हां ना के बीच
गीतों में-
गूंजे कूक प्यार की
नागार्जुन के महाप्रयाण पर
पाकशाला का गीत
सपनों में सतपुड़ा
सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में-
इन दिनों
गर्भगृह तक
गांव आने पर
निश्चय ही वहां
महक
मां की याद
मिल बांटकर
सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा
हथेलियां |
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पाकशाला का गीत
मैं जीरे की छौंक
और हूँ
लहसुन की चटनी
मका बाजरा की रोटी मैं
सौंधी गंध सनी
चौकी बेलन की संगत पर
मैं तो दिनभर गाती
दाल भात की खुशबू से मैं
हर दिन खूब नहाती
मैं चूल्हे की आँच
और हूँ सब्ज़ी की ढकनी
हाथों पिसा मसाला हूँ मैं
हूँ अचार की बरनी
काली मिर्च हींग की डिबिया
जीरामन की फकनी
गुड़-सत्तू का स्वाद और हूँ
सादी नमक भुरकनी
भरी डकारें सुनकर मेरा
रोम-रोम सुख पाता
जब तक खिला न दूँ घर भर को
मुझे चैन न आता
मुझमें सबके प्राण और मैं
सबकी तृप्ति-मणी
24 जुलाई
2006
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