अनुभूति में
प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ
प्रार्थना होता जीवन
भूख और सूरज
ममत्व से दूर
लौटती जनता
स्त्री
हमारा चाहने वाला
हां ना के बीच
गीतों में-
गूंजे कूक प्यार की
नागार्जुन के महाप्रयाण पर
पाकशाला का गीत
सपनों में सतपुड़ा
सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में-
इन दिनों
गर्भगृह तक
गांव आने पर
निश्चय ही वहां
महक
मां की याद
मिल बांटकर
सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा
हथेलियां |
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गर्भगृह तक
हवा ने पेड़ों के कान में कुछ सुरसुराया
और बजने लगे कछार
ओर छोर थिरकने लगी नदी
और फिसल चले लहरों के रुमाल हिलाते प्रपात
कोसों दूर से प्रिया-पुकार सुन
पल्लर पल्लर झूम उठा सागर
तभी धूप-दीप से महकते बादल आए
और लाद चले भाप भाप उसे
थाम लीं मशालें बिजलियों ने
और घरघराती चल पड़ी गजयात्रा आकाश से
आजकल इनकी ही पहुनाई में लगी धरती
पानी पानी है गर्भगृह तक।
1 मई
2006
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