अनुभूति में
प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ
प्रार्थना होता जीवन
भूख और सूरज
ममत्व से दूर
लौटती जनता
स्त्री
हमारा चाहने वाला
हां ना के बीच
गीतों में-
गूंजे कूक प्यार की
नागार्जुन के महाप्रयाण पर
पाकशाला का गीत
सपनों में सतपुड़ा
सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में-
इन दिनों
गर्भगृह तक
गांव आने पर
निश्चय ही वहां
महक
मां की याद
मिल बांटकर
सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा
हथेलियां |
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महक
दिनों बाद माँ मिली तो
खिलते रहे देर तक रोम-रोम
स्वप्न में स्वर्गीय पिता दिखे तो
आकाश-सा फैल गया माथे पर आशीर्वाद
भाइयों से भेंट हुई तो
क्षितिजों तक लंबी हो गईं भुजाएँ
अर्से बाद बहिनें मिली तो
राखी का त्यौहार हो गया मन
नाती-पोतों को पाते ही
कनियाँ-कनियाँ भर गया आँगन
देखो तो!
धूप दीप जैसा
कितना-कितना महक रहा है घर!!
1 मई
2006
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