अनुभूति में
प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ
प्रार्थना होता जीवन
भूख और सूरज
ममत्व से दूर
लौटती जनता
स्त्री
हमारा चाहने वाला
हां ना के बीच
गीतों में-
गूंजे कूक प्यार की
नागार्जुन के महाप्रयाण पर
पाकशाला का गीत
सपनों में सतपुड़ा
सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में-
इन दिनों
गर्भगृह तक
गांव आने पर
निश्चय ही वहां
महक
मां की याद
मिल बांटकर
सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा
हथेलियां |
|
मिल बाँटकर
घर से चलते वक्त पोटली में
गुड़ सत्तू चबैना रख दिया था माँ ने
और जाने क्या क्या
ठसाठस रेलगाड़ी में देर तह खडे-खडे
भूख लगने लगी तो पोटली खोली
जिसके खुलते ही
पूरा का पूरा आकाश निकल कर
छा गया डिब्बे में
पास की सीट पर
फैलकर बैठे मुसाफ़िर ने सिकुड़कर
बैठने की जगह देते हुए पूछा
कहाँ के हो भैया?
जवाब के पहले
धर दिया उसकी हथेली पर
मुठ्ठीभर चबैना यह कहते हुए
कि घर ने बरहमेश
मिल बाँट कर खाने को कहा है-
तुम भी खाओ
यह सुन वह झाँक कर देखता रहा।
मेरी आँखों में मेरा घर
जहाँ आँगन में बैठी माँ
केड़ा केड़ियों को घास के पूले खिलाती
पड़ोस वाली काकी से
मेरी ही बातें करती दिख रही होगी।
1 मई
2006
|