अनुभूति में प्रेम शंकर रघुवंशी की रचनाएँ-
नई कविताएँ प्रार्थना होता जीवन भूख और सूरज ममत्व से दूर लौटती जनता स्त्री हमारा चाहने वाला हां ना के बीच
गीतों में- गूंजे कूक प्यार की नागार्जुन के महाप्रयाण पर पाकशाला का गीत सपनों में सतपुड़ा सिसक रही झुरमुट में तितली
कविताओं में- इन दिनों गर्भगृह तक गांव आने पर निश्चय ही वहां महक मां की याद मिल बांटकर सतपुड़ा और उसकी बेटी नर्मदा हथेलियां
ममत्व से दूर
बछड़ा दूध पीता तब तक ही पहचानता माँ को
रँभाते वक़्त भी यही ध्वनि निकलती कंठ से उसके
बड़ा होते बढ़ने लगते माथे पर सींग
ममत्व से जो भी दूर जाता पशुत्व के क़रीब होता जहाँ पूरी दुनिया ही उसे अपनी चरागाह लगती है।
16 मई 2007
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