लड़कियाँ उदास हैं
लड़कियाँ उदास हैं
अब वे कैसे खेलें खेल
उनके खेलने की हर जगह पर
अधिकार कर लिया है
उद्दंड लड़कों की टोलियों ने
लड़कियाँ उदास हैं
पर वह अनन्त काल तक
भला उदास कैसे रहेंगी
उनकी तो फ़ितरत में है
हँसना, खिलखिलाना,
फुर्र से उड़ जाने वाली
कभी अबाबील
तो कभी
तितली में तब्दील हो जाना।
लड़कियाँ उदास हैं,
पर वे नहीं है पराजिता
कोई लाख बाँध डाले
उनके परों को,
चाहे बींध दे
उनके मनोभावों को
हिदायतों के नुकीले आलपिनों से,
वे आज नहीं तो कल
हँसेगी ज़रूर, खिलखिलाएँगी भी
खिलंदरी भी करेंगी,
कुलाँचे भी भरेंगी।
लड़कियाँ उदास हैं
उनके मन के
अराजक वर्षा-वनों में
उमड़ रहे हैं जल-प्रपात
कौन कब तक रोक पाएगा
उनके प्रवाह को
जल प्रलय बनकर
उनका क़हर बरपाना तय है।
लड़कियाँ उदास हैं
तो सारी कायनात उदास है
जितनी जल्दी हो सके
ससम्मान लौटा दो उन्हें
उनके खेलने की जगह,
खोल दो उनके परों को,
भरने दो उन्हें उन्मुक्त उड़ान।
लड़कियाँ उदास हैं,
तो समझ...
यह कोई अच्छी खब़र नहीं है।
१४ दिसंबर २००९ |