अनुभूति में निर्मल गुप्त की
रचनाएँ-
नई कविताओं में-
तुम्हारे बिना अयोध्या
नाम की नदी
फूल का खेल
बाघखोर आदमी
रोटी का सपना
छंदमुक्त में-
इस नए घर में
एक दैनिक यात्री की दिनचर्या
एहतियात
गतिमान ज़िंदगी
घर लौटने पर
डरे हुए लोग
नहाती हुई लड़की
पहला सबक
बच्चे के बड़ा होने तक
बयान
मेरे ख्वाब
लड़कियाँ उदास हैं
हैरतंगेज़
रेलवे प्लेटफ़ार्म |
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इस नए घर में
इस नए घर में
सब कुछ है
वह सभी साज़ो सामान
जो बाज़ार में उपलब्ध हैं
तमाम सुख सपनों के
आश्वासानों के साथ
इस घर में नहीं है
एक अदद आँगन
जिसके रहते
खुली हवा
खिलखिलाती धूप
बारिश की नटखट बूँदें
वाचाल सूखे पत्ते
बहुरंगी आवारा फूल
इठलाती तितलियाँ
चहचहाती चिड़ियाएँ
चली आती थीं
बेरोक टोक
इस नए घर में
वह पुराने वाला आसमान
सिरे से नदरद है
जिस पर मैं लिखा करता था
तारों की लिपि में
अपने सपनों के गीत
इस नए घर में
चारों तरफ़ पसरा है
बाज़ार ही बाज़ार
जिसकी भीड़भाड़ भरी
गहमागहमी में
अक्सर मैं
अपनापन और घर
ढूँढ़ता रह जाता हूँ।
२५ फ़रवरी २००८
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