सान्ताक्लाज
से...
सबके,
दुनिया भर के बच्चों के
प्यारे सान्ताक्लाज़
एक बार आप
हमारी बस्ती में जरूर आओ।
हमें नहीं चाहिए
कोई उपहार
कोई गिफ्ट
कोई खिलौना रंग बिरंगा
आपसे,
हमें तो बस
किसी बच्चे की
पुरानी, फटी, गुदड़ी
या फिर कोई
उतरन ही दे देना
जो इस हाड़ कंपाती
ठंडक में
हमें जिन्दा रख सके।
हमारी असमय
बूढी हो चली माँ
झोपड़ी के कोने में
टूटी चरपैया पर पड़ी
रात रात भर खों खों खाँसती है
बस एक बार
आप उसे देख भर लेना
सुना है
आपके
देख लेने भर से
बड़े से बड़े असाध्य
रोग के रोगी
भी ठीक हो जाते हैं।
हमारी बड़की दीदी
तो अम्मा के हिस्से
का काम करने
कालोनियों में जाते जाते
पता नहीं कब
अचानक ही
अनब्याही माँ बन गई
पर छुटकी दीदी के हाथ
हो सके तो
पीले करवा देना।
हमारे हाथों में
साइकिलों, स्कूटरों, कारों के
नट बोल्ट कसते कसते
पड़ गए हैं गट्ठे (गाँठें)
अगर एक बार
छू भर लोगे आप
तो शायद हमारी पीड़ा
ख़तम नहीं तो
कुछ कम तो जरूर हो जाएगी।
चलते चलते
एक गुजारिश और
प्यारे सान्ताक्लाज़
हमारी बस्ती को तो
रोज़
उजाड़ा जाता है
हम प्रतिदिन
उठा कर फेंके जाते हैं
फ़ुटबाल के मानिंद
शहर के एक कोने से दूसरे
दूसरे से तीसरे
तीसरे से चौथे
और उजाड़े जाने की यह
अंतहीन यात्रा है…
कि ख़तम ही नहीं होती।
चलते चलते
भागते भागते
हम हो चुके हैं
पस्त / क्लांत / परास्त
सान्ताक्लाज़
हो सके तो हमारे लिए भी
दुनिया के किसी कोने में
एक छोटी-सी बस्ती
जरूर बना देना।
सबके
दुनिया भर के
बच्चों के
प्यारे सान्ताक्लाज़
एक बार आप
हमारी बस्ती में जरूर आना
१८ जनवरी २०१०
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