अनुभूति में
डॉ. कुमार
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मासूम लड़की
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मासूम लड़की
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
मुंह अंधेरे ही आकर
हमारी पूरी कालोनी को
जगा देती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
बर्तनों की खड़ भड़
झन झन टनाक टन्न
नल की टोटी से
तेज धार बहता पानी
इसी में अपने
जीवन का संगीत ढूँढ़ती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
झाड़ू की खर्र खर्र
सर्र सर्र
पोंछे की
छपाक छप्प
फ़र्नीचरों की
उठापटक के बीच
बार बार माथे के बालों
को पीछे करती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
कमरे में बिखरे सामानों को
समेटने में ही
अपने भविष्य के सपनों को
आकार देती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
कमरे में मेज पर
बिखरी बच्चों की
किताबों पेंसिलों और बस्तों
रैक पर सजे खिलौनों को
बड़ी हसरत से
निहारती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
सुबह से शाम तक
आण्टियों की डांट डपट
अंकलों की
अल्ट्रावाइलट रेज वाली
शातिर निगाहों से
नहा कर सराबोर
हो जाती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
जुम्मा जुम्मा
आठ नौ बरस की उमर में ही
पूरी कालोनी की
खबरों को
मिर्च मसाला लगाकर
आण्टियों से बतियाती
पूरी दादी अम्मा
बन गयी
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
१९ अक्तूबर २००९
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