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नियति

इस जंगल में
हर शाम
एक कहर बरपा होता है
सन्नाटा टूटता है जंगल का
बन्दूकों की आवाजों से।
बूट रौंदते हैं
जंगल के सीने को
टूटती हैं
कुछ व्हिस्की और रम की
खाली बोतलें
और एक मासूम पेंडुकी
दम तोड़ देती है
तड़फ़ड़ा कर
चन्द खुरदुरे हाथों के बीच।

१८ जनवरी २०१०

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