अनुभूति में
डॉ. कुमार
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कहाँ हो डैडी
मेरे प्यारे डैडी
तुम कहाँ खो गए हो
पिछले कुछ दिनों से
लगा हूँ मैं
हर समय तुम्हारी ही तलाश में
सुबह शाम दोपहर रात।
वह आदमी जो
हर सुबह
सोते हुए मेरे हाथों को
किस करके चला जाता है
और देर रात में
जब सारी दुनिया के साथ
मैं भी
फूलों की रंग बिरंगी घाटियों में
भागता रहता हूँ तितलियों के पीछे
अचानक मुझे जगाकर
मेरे उनींदे हाथों में
पकड़ा देता है
चाकलेट का पैकेट और
ढेर सारे खिलौने।
वह आदमी तुम तो
नहीं हो डैडी
बोलो तुम कहाँ खो गए हो।
वह जो आदमी
तुम्हारी ही शकल का
पिछले कुछ दिनों से
दिखाई पड़ता है मुझे
कभी छोटे परदे पर
कभी बड़े परदे पर
कभी टैक्सी में
कभी कार में
कभी पार्टियों में
कभी गोष्ठियों में
वह भी तुम नहीं हो डैडी
तुम नहीं हो सकते।
प्यारे डैडी
तुम कहाँ खो गए हो।
वह जो आदमी
सप्ताह में/ महीने में एक बार
मेरी मम्मी के साथ मुझे
बड़ी सी कार में बिठाकर
कनाटप्लेस
कुतुबमीनार
अप्पूघर की सैर कराने ले जाता है
उसकी शक्ल तुम्हारे जैसी ही है डैडी
लेकिन मुझे मालूम है
वह तुम नहीं हो।
फ़िर बोलो डैडी
मैं तुम्हें कहाँ खोजूं
त्रिवेणी सभागार में
श्रीराम सेंटर में
या होटल पार्क की लाबी में।
बोलो मेरे प्यारे डैडी
तुम कहाँ खो गए हो।
१८ जनवरी २०१० |