अनुभूति में
डॉ. कुमार
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चिड़िया
चिड़िया तो आखिर चिड़िया है
उसको बेचारी को कहाँ पता कि हम
सभ्य हो रहे हैं
और हमारा विकास
पूरी प्रगति पर है ।
चिड़िया तो खोज रही है
सूनी आँखों से
अपना नन्हां सा घोसला
और नन्हें बच्चों को
जिन्हें वह अकेला छोड़
सुबह उड़ गई थी
दानों की खोज में
पर अब तो वहाँ कुछ भी नहीं
न पेड़ न घोसला न बच्चे ।
उसे तो दिख रहा है
दूर दूर तक फ़ैला हुआ
कंक्रीट और इस्पात का
एक अंतहीन जंगल
पिघले हुये
काले तारकोल की बहती नदियाँ
और धरती के सीने में
उड़ेला जा रहा
खौलता इस्पात ।
चिड़िया बेचारी तो
हो गयी है स्तब्ध
हमारी सभ्यता
और विकास की तेज
गति को देखकर ।
आखिर वह
अब कहाँ खोजे
अपना घोसला और बच्चों को
किससे करे फ़रियाद
खाकी वर्दी / खद्दरधारी से
या फिर यू एन ओ और
वर्ल्ड पीस फ़ाउण्डेशन के
माननीय सदस्यों से ?
लेकिन
चिड़िया तो आखिर चिड़िया है
उसको बेचारी को कहाँ पता
कि हम सभ्य हो रहे हैं
और हमारा विकास प्रगति पर है
हमें नहीं कोई मतलब
चिड़िया घोसले
और उसके बच्चों से ।
१९ अक्तूबर २००९
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