अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. कुमार हेमंत की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
उनकी दुनिया
गौरैया से
जागो लड़कियों
तितलियाँ

छंदमुक्त में-
सांताक्लाज़ से
इन्तजार
कटघरे के भीतर
कहाँ खो गया बचपन
कहाँ हो डैडी
चिड़िया
नियति
मासूम लड़की
वजूद की तलाश

 

गौरैया से

प्यारी गौरैया
क्यों रूठ गई हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।

मेरा आँगन घर
और खपरैले पर फैली
लौकी की बेल
सब बाट जोह रहे
तुम्हारी वापसी का।

तुम्हारी
चीं चीं चूँ चूँ से ही
हमारी सुबह होती थी
आँगन में तुम्हारे फुदकने
के साथ ही तो
हम भी
शुरू करते थे धमाचौकड़ी।

प्यारी गौरैया
फिर क्यों रूठ गयी हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।

याद होगा तुम्हें भी
हमारा बचपन
सबेरे जब मां आँगन में
बंसेहटी पर हमें
खाना खिलाने बैठती
कितना निडर होकर
तुम आ बैठती थी
बंसेहटी के पावे पर
माँ चीखती
बड़ी ढीठ गौरैया।

कहीं तुम इसी से तो
नाराज नहीं हो गयी?

प्यारी गौरैया
सुना है आज
पूरी दुनिया भर में
तुम्हें मनाने
आँगन में वापस बुलाने
और
तुम्हारी प्रजाति बचाने
के लिये
गौरैया दिवस मना रहे हैं
सारे लोग
तुम्हें वापस बुलाने के
ढेरों उपाय और जतन
कर रहे हैं
दुनिया भर के लोग।

प्यारी गौरैया
एक बार ---
सिर्फ एक बार तुम
माफ कर दो
हम सभी को
लौट आओ फिर से हमारे
आँगन और खपरैलों पर
मैं तुम्हें कर रहा हूँ आश्वस्त
अब नहीं कहेंगी मां तुम्हें कभी
ढीठ गौरैया
नहीं रंगेंगे पिताजी
तुम्हारे कोमल पंखों को
गुलाबी रंग से
नहीं डाँटेगा
तुम्हें कोई भी
शैतान गौरैया कहकर।
बोलो
प्यारी गौरैया
तुम वापस आओगी न
फिर से
मेरे आँगन में?

३ अगस्त २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter