अनुभूति में
विमलेश चतुर्वेदी विमल
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
आपसे क्या मिली नजर
जिंदगानी पराई हुई
बात चलती रही
शब, शम्मा, परवाना
अंजुमन में-
अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली |
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कोई सोए कोई जागे
कोई सोए, कोई जागे।
दुनिया खेल तमाशा लागे।
तहजीबी इंसानी रिश्ते,
टूट रहे ज्यों कच्चे धागे।
इक दूजे पर व्यंग-बमों को,
पा मौका, हर कोई दागे।
अपराधों की खुली दौड़ में,
पीछे चोर, सिपाही आगे।
रोज योजना आती जाती।
मर मर जीते रहे अभागे।
जलता दिया सिर्फ चौबारे।
भीतर का तम कैसे भागे।
बने 'विमल`मीठी गुड़-भेली।
गन्नारस कोल्हार जब पागे।
१२ जुलाई २०१० |