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आपसे क्या मिली नजर
जिंदगानी पराई हुई
बात चलती रही
शब, शम्मा, परवाना

अंजुमन में-
अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली

 

बात चलती रही

बात चलती रही।
रात ढलती रही।

ताप बढ़ता गया।
बर्फ गलती रही।

भूख की आग से,
आस जलती रही।

एक उम्मीद की,
लौ मचलती रही।

दर्दे-गम औ` खुशी,
दर बदलती रही।

याद के भँवर में,
जाँ निकलती रही।

वक्त की गोद से,
रुत फिसलती रही।

रूप की चाँदनी,
हाथ मलती रही।

२५ अक्तूबर २०१०

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