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अनुभूति में विमलेश चतुर्वेदी विमल की रचनाएँ-

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आपसे क्या मिली नजर
जिंदगानी पराई हुई
बात चलती रही
शब, शम्मा, परवाना

अंजुमन में-
अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली

 

अपना वह गाँव

मैं अपना वह गाँव, गाँव की नीति रीति बानी माँगूँ।
नर्म दूब, बरगद की छाया, पोखर का पानी माँगूँ।

काले मेघा बरसायेंगे, मन में ये विश्वास लिए।
मेढक के संग कालकलइया खेलूँ,गुड़धानी माँगूँ।

बाबा की उँगली का सम्बल, माँ के आँचल की छाया।
बचपन की मुस्कान ठिठोली चंचल मस्तानी माँगूँ।

पुरखों का घर खेती-बाड़ी, हीरा मोती की जोड़ी।
बेटे भरत श्रवण से, पत्नी झाँसी की रानी माँगूँ।

देख अकेली बहू बेटियाँ, नर को पशु बनते देखा।
इन्हें नकेल पिन्हाने खातिर ताकत रूहानी माँगूँ।

होता कोई शर्मसार ही नहीं गुनाहों पर खुद के।
उन्हें डुबाने खातिर किससे चुल्लू भर पानी माँगूँ।

कब कब सूरज उगे ढले, बहुखन्डी माले क्या जानें।
इनके लिए 'विमल` नीलाम्बर, थोड़ी भू-धानी माँगूँ।

१२ जुलाई २०१०

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