अनुभूति में
विमलेश चतुर्वेदी विमल
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
आपसे क्या मिली नजर
जिंदगानी पराई हुई
बात चलती रही
शब, शम्मा, परवाना
अंजुमन में-
अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली |
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आजमाइश जिन्दगी से
आजमाइश जिन्दगी से हादसे करते रहे।
हम गिरे, गिरकर उठे, उठकर चले, चलते रहे।
मैं फिसलकर क्या गिरा, कुछ की तो बाँहें खिल उठीं।
वो दवा के नाम पर मुझको जिबह़ करते रहे।
मैं जहाँ कल था खड़ा, अब भी वहीं पर हूँ खड़ा।
रास्ते चलते रहे, चलते रहे, चलते रहे।
घास की चादर मुलायम, ओस के मोती जड़े।
रात है मदहोश, तारे खुदकुशी करते रहे।
आइना कल था जहाँ जैसा वहीं है आज भी,
आदमी ही आइने के सामने डरते रहे।
मत किसी से बात अपने दिल की बतलाना 'विमल`,
लोग हैं कि जान-सुन बस तब्सिरा करते रहे।
१२ जुलाई २०१० |