अनुभूति में
विमलेश चतुर्वेदी विमल
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आपसे क्या मिली नजर
जिंदगानी पराई हुई
बात चलती रही
शब, शम्मा, परवाना
अंजुमन में-
अपना वह गाँव
आजमाइश ज़िंदगी से
कोई सोए कोई जागे
घुट घुटकर
जाम खाली |
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आपसे क्या मिली
नज़र
आपसे क्या मिली नजर मोमिन।
वक्त इक दम गया ठहर मोमिन।
रात को नींद भी नहीं आई।
है परीशान हर पहर मोमिन।
गोशे चिलमन से झाँकता चंदा।
चैन खोया है इस कदर मोमिन।
जायका खूब है, नशा भी है,
है गजब इश्क का समर मोमिन।
कोई चेहरा छिपा के निकला, पर
जुल्फ ढाती रही कहर मोमिन।
यूँ 'विमल` कर गई असर सुहबत।
मयनशीं पी गया जहर मोमिन।
२५ अक्तूबर २०१० |