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अनुभूति में उषा यादव 'उषा' की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
उदास है श्रम चाँद
देखना एक दिन ''फिर''
प्रेम नीड़

सुनो

अंजुमन में--
कोई भी शै नहीं
दरमियाँ धूप-सी
पुरखतर राह है
बन्द है
हर तरफ दिखते हैं

 

पुरख़तर राह है

पुरख़तर राह है हाथ थामों ज़रा।
तीरगी की नदी है सँभालो ज़रा।

वक़्त की वेदना से निभाओ ज़रा।
दर्द ग़ज़लों में ढालो सँभालो ज़रा।

अपनी पहचान की मुझको भी है तलाश,
दुशमनों नाम लेकर पुकारो ज़रा।

प्यास सदियों से होंठो पे ठहरी है देख्र,
अब्र ! सहरा की क़िस्मत सँवारो ज़रा।

आज क्यों रहता है बेहिसी में बशर,
अब तुम्हीं वक़्त कुछ तो बताओ ज़रा।

३ जून २०१३

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