अनुभूति में
उषा यादव 'उषा'
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
उदास है श्रम चाँद
देखना एक दिन ''फिर''
प्रेम नीड़
सुनो
अंजुमन में--
कोई भी शै नहीं
दरमियाँ धूप-सी
पुरखतर राह है
बन्द है
हर तरफ दिखते हैं
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बन्द है
शहरे दिल का हरिक अब मकाँ बन्द है।
सुख-परिंदा भी आखि़र कहाँ बन्द है।
गूँगे आतुर हुये बोलने के लिये,
पर ज़बाँ वालों की तो ज़बाँ बन्द है।
एक आँधी उठे हुक़्मराँ के खि़लाफ़,
दिल में कब से घुटन ये धुआँ बन्द है।
मसअला तो अना की है इतनी बढ़ी,
गुफ्तगू दोनों के दरमियाँ बन्द है।
वो हैं आज़ादी के आज रहबर बने,
जिनकी मुट्ठी में तो कहकशाँ बन्द है।
अय ‘उषा’ हम करें ग़म बयाँ किस तरह,
ख़ामोशी शोर के दरमियाँ बन्द है।
३ जून २०१३
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