अनुभूति में
उषा यादव 'उषा'
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
उदास है श्रम चाँद
देखना एक दिन ''फिर''
प्रेम नीड़
सुनो
अंजुमन में--
कोई भी शै नहीं
दरमियाँ धूप-सी
पुरखतर राह है
बन्द है
हर तरफ दिखते हैं
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देखना एक दिन फिर
आज भी -
मैं बार -बार ''स्वप्न -संकल्प '' दुहराती हूँ
वर्तमान की दहलीज़ से चलकर
बीते समय के आँगन में
मन-व्याकुल विचरण करता है
कितने ही अनकहे आतुर प्रश्न खड़े होते हैं
पलाश के फूल कि मानिंद खिली स्मृतियाँ
वर्तमान की निर्जनता को
ख़ामोश तका करती हैं
लम्हा-लम्हा
विगत समय के स्वर्ण-महल में
उदास हृदय भटकता है और कभी
यादों के तंतुजाल में उलझा-उलझा रहता है
प्रेम की बस्ती समय के धारासार प्रवाह में
जाने कहाँ बिला गई
क्या यही है प्रारब्ध प्रेम का?
मेरा प्रारब्ध मुझको छलता है
जितना उससे मैं लडती हूँ
प्रेम-प्रार्थनाएँ लिपटी होती हैं आत्मा से
जैसे पेड़ों से लिपटे होते हैं
मन्नतों के धागे
पूरब में लगी रहती हैं निगाहें
शायद कभी विहान हो जाये
शायद ''उषा'' की सोन-आभा सी किरणें
अँधियारे प्रेम-पथ को आलोकित कर दें
और मैं आज भी उम्मीद लिए
देशज ठाट-बाट के साथ मुहब्बत-नामा लिखती हूँ
देखना एक दिन ''फिर''
तुम्हारे हृदय-प्रांगण में,
मैं प्रेम का बिरवा रोपूँगी
तपसी प्रयाग गंगा की सौगंध
देखना आऊँगी ग्राम तुम्हारे
और मैं तुमसे ही तुमको माँग लूँगी
१०
मार्च २०१४ |