अनुभूति में
राम
शिरोमणि पाठक
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
इक ऐसा भी घर बनवाना
इस कदर दोस्तों
ऐसे भी हक अदा करो
गर मैं तेरा हिस्सा हूँ
मैं अपने ही साथ रहूँगा
लाचार हो क्या
अंजुमन में-
अपना फर्ज
ऐसा मंजर देखा
कभी सस्ता कभी महँगा
फिर से वही कहानी
सच
क्षणिकाओं में-
रामशिरोमणि पाठक की क्षणिकाएँ
संकलन में-
पिता की तस्वीर-
बाबा कहते थे
ममतामयी-
माँ की ममता
मेरा भारत- सपूत देश के
रक्षाबंधन-
नेह भरा उपहार
शुभ दीपावली-
उजियारे की धूम है
सूरज-
मेरे घर भी आए दिनकर
नैनों में नंदलाल-
झूला झूले राधिका |
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ऐसा मंज़र देखा
मैंने ऐसा मंज़र देखा
बहती आँख समंदर देखा
मुझको अपना कहता था जो
उसके हाथों खंजर देखा
मुखड़ा देखा जबसे उनका
तबसे चाँद न अम्बर देखा
शायद कुछ तो दिख ही जाये
मैंने खुद के अंदर देखा
दूर दूर तक हरियाली थी
धरा, उसे अब बंजर देखा
१ नवंबर २०१६
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