|
झूला झूले राधिका |
|
|
|
कण कण में है वो बसे, इधर उधर चहुँ ओर।
नटखट कान्हा, कृष्ण या, कह लो माखनचोर।।
ध्यान मग्न रहता सदा, प्रतिदिन आठों याम।
वेणु बजाते आइये, मेरे गृह भी श्याम।
कान्हा तेरी वेणु का, कितना मधुर प्रभाव।।
कष्टों पर औषधि सदृश, भर जाते हो घाव।।
तेरा भी कल्याण हो, जग का हो कल्यान।
कान्हा देखो कह रहे, गा परमार्थ सुगान ।।
कितना भी तूफ़ान हो, या टूटी पतवार।
कान्हा तेरे साथ है, हो जाएगा पार।।
लोभ कपट को त्यागकर, करता अच्छे काम।
श्याम स्वयं बसते वहाँ, जान अरे नादान।।
हाथों में मुरली लिए, अधरों पे मुस्कान।
ऐसा मोहक रूप है, खिल खिल उठते प्रान।।
चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै ।
लाल कपोल लगे उनके अरु, होंठ कली जइसे मुसकावै ।।
भाग रहे नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै ।
नेह भरे अपने कर से फिर, लाल दुलारत जात खिलावै ।।
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
१८ अगस्त २०१४ |
|
|
|
|