अनुभूति में
महावीर
उत्तरांचली की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
तसव्वुर का नशा
दिल मेरा
नज़र को चीरता
मना नहीं सकता
सोच का इक दायरा
कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)
अंजुमन में-
काश होता मजा
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
नज़र में रौशनी है
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
साधना कर
हार किसी को
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नजर को चीरता
नजर को चीरता जाता है मंज़र
बला का खेल खेले है समन्दर
मुझे अब मार डालेगा यकीनन
लगा है हाथ फिर क़ातिल के खंजर
है मकसद एक सबका उसको पाना
मिल मस्जिद में या मंदिर में जाकर
पलक झपकें तो जीवन बीत जाये
ये मेला चार दिन रहता है अक्सर
नवाज़िश है तिरी मुझ पर तभी तो
मेरे मालिक खड़ा हूँ आज तनकर
१ मई २०२४
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