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काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा

कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को

 

तलवारें दोधारी क्या

तलवारें दोधारी क्या
सुख-दुःख बारी-बारी क्या

फ़न क्या है फनकारी क्या
दिल क्या है दिलदारी क्या

क़त्ल ही मेरा ठहरा तो
फाँसी, खंजर, आरी क्या

कौन किसी की सुनता है
मेरी और तुम्हारी क्या

चोट कज़ा की पड़नी है
बालक क्या, नर-नारी क्या

पूछ किसी से दीवाने
करमन की गति न्यारी क्या

जान रही है जनता सब
सर क्या है, सरकारी क्या

झाँक ज़रा गुर्बत में तू
ज़र क्या है, ज़रदारी क्या

सोच फकीरों के आगे
दर क्या है, दरबारी क्या

१ सितंबर २०१६

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