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काश होता मजा
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रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा

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ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)

अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को

 

हार किसी को
 

हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती
जीत मगर प्यारे हर बार नहीं होती

एक बिना दूजे का, अर्थ नहीं होता
जीत कहाँ पाते गर हार नहीं होती

बैठा रहता मैं भी एक किनारे पर
राह अगर मेरी दुश्वार नहीं होती

डर मत लहरों से आ पतवार उठा ले
बैठ किनारे नैया पार नहीं होती

खाकर रूखी-सूखी, चैन से सोते सब
इच्छाएँ यदि लाख-हज़ार नहीं होती

८ अप्रैल २०१३

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