अनुभूति में
महावीर
उत्तरांचली की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)
अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को
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तीरो-तलवार से
तीरो-तलवार से नहीं होता
काम हथियार से नहीं होता
घाव भरता है धीरे-धीरे ही
कुछ भी रफ़्तार से नहीं होता
खेल में भावना है ज़िंदा तो
फ़र्क कुछ हार से नहीं होता
सिर्फ़ नुक्सान होता है यारों
लाभ तकरार से नहीं होता
उसपे कल रोटियाँ लपेटे सब
कुछ भी अख़बार से नहीं होता
१ सितंबर २०१६
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