अनुभूति में
महावीर
उत्तरांचली की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)
अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को
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काश! होता मज़ा
काश! होता मज़ा कहानी में
दिल मेरा बुझ गया जवानी में
फूल खिलते न अब चमेली पर
बात वो है न रातरानी में
उनकी उल्फ़त में ये मिला हमको
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
आओ दिखलायें एक अनहोनी
आग लगती है कैसे पानी में
तुम रहे पाक-साफ़ दिल हरदम
मै रहा सिर्फ बदगुमानी में
१ सितंबर २०१६
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