अनुभूति में
महावीर
उत्तरांचली की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)
अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को
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बड़ी तकलीफ
देते हैं
बड़ी तकलीफ देते हैं ये रिश्ते
यही उपहार देते रोज अपने
जमीं से आसमाँ तक फैल जाएँ
धनक में ख्वाहिशों के रंग बिखरे
नहीं टूटे कभी जो मुश्किलों से
बहुत खुद्दार हमने लोग देखे
ये कड़वा सच है यारों मुफलिसी का
यहाँ हर आँख में हैं टूटे सपने
कहाँ ले जायेगा मुझको जमाना
बड़ी उलझन है, कोई हल तो निकले
१५ फरवरी २०१६
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