अनुभूति में
महावीर
उत्तरांचली की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
काश होता मजा
तलवारें दोधारी क्या
तीरो-तलवार से
नज़र में रौशनी है
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
कुंडलिया में-
ऐसी चली बयार (पाँच कुंडलिया)
अंजुमन में-
गरीबों को फकत
घास के झुरमुट में
जो व्यवस्था
तेरी तस्वीर को
दिल से उसके जाने कैसा
बड़ी तकलीफ देते हैं
बाजार में बैठे
राह उनकी देखता है
साधना कर
हार किसी को
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राह उनकी देखता
है
राह उनकी देखता है
दिल दीवाना हो गया है
दूर तक बिखरा पड़ा है
चूर शीशा हो गया है
छाने को है बदहवासी
दर्द मुझको पी रहा है
कुछ रहम तो कीजिए अब
दिल हमारा आपका है
कह रहे गुस्ताख लेकिन
छेड़ का अपना मज़ा है
आप जबसे हमसफ़र हैं
रास्ता कटने लगा है
ख़त्म हो जाने कहाँ अब
ज़िन्दगी का क्या पता है
बात जो बनने लगी तो
शेर पूरा हो गया है
८ अप्रैल २०१३
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