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अनुभूति में दिगंबर नासवा की
रचनाएँ-
अंजुमन में-
ढूँढते हो क्यों
बात सरसरी
बेच डाली
लट्टू गए

गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है

पलाश की खट्टी कली

अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार

संकलन में-
मेरा भारत- हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा- आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली- इस बार दिवाली पर

 

ढूँढते हो क्यों

ढूँढते हो क्यों पुराने आइने चटके हुए
और कुछ लम्हे किसी दीवार पे अटके हुए

हम है गुज़रे वक़्त की ठहरी हुई इक झील से
लोग आते है किसी की याद में भटके हुए

डूबना तो था हमारे भाग्य में लिक्खा हुआ
हम हैं उन तिनकों से जो हैं खींच के झटके हुए

उगते सूरज को हमेशा साथ रखते हैं सभी
हम हैं ढलती शाम जैसे धूप से पटके हुए

नाप में छोटा बड़ा होना लिखा तक़दीर में
हम क़मीज़ों से हैं अक्सर शेल्फ़ में लटके हुए

क्या कहूँगा सोच कर खोला नहीं दर फिर कभी
पर न जाने घर पे कितनी बार ही खटके हुए

१ अगस्त २०२३

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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