अनुभूति में
दिगंबर नासवा की
रचनाएँ-
अंजुमन में-
ढूँढते हो क्यों
बात सरसरी
बेच डाली
लट्टू गए
गीतों में-
आशा का घोड़ा
क्या मिला सचमुच शिखर
घास उगी
चिलचिलाती धूप है
पलाश की खट्टी
कली
अंजुमन में-
आँखें चार नहीं कर पाता
प्यासी दो साँसें
धूप पीली
सफ़र में
हसीन हादसे का शिकार
संकलन में-
मेरा भारत-
हाथ वीणा नहीं तलवार
देश हमारा-
आज प्रतिदिन
शुभ दीपावली-
इस बार दिवाली पर
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बात सरसरी
कमसिन सी तितलियों में उड़ी बात सरसरी
उतरेगी बादलों से मेरी फूल सी परी
मफ़लर लपेटे हुस्न की यादों में खो गया
सिगरेट पड़ी थी ट्रे में सुलगती धुएँ-भरी
माँ बोलती थी देखने आएगी एक दिन
दफ़्तर में उनके सामने झाड़ूँ जो अफ़सरी
बोला जो मैंने जान मेरी इल्तिजा तो सुन
बोली कि चुप करो न बनो यूँ ही चौधरी
माना हैं घर के गेट व कमरे बहुत बड़े
मन से हैं मन की आज भी गलियाँ ये संकरी
१ अगस्त २०२३
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