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तेरी ज़िद
तेरी ज़िद, घर-बार निहारूँ,
मन बोले संसार निहारूँ।
पानी, धूप, अनाज जुटा लूँ,
फिर तेरा सिंगार निहारूँ।
दाल खदकती, सिकती रोटी,
इनमें ही करतार निहारूँ।
बचपन की निर्दोष हँसी को,
एक नहीं, सौ बार निहारूँ।
तेज़ धार औ भँवर न देखूँ,
मैं नदिया के पार निहारूँ।
८ दिसंबर २००८ |