अनुभूति में
अमर ज्योति नदीम की रचनाएँ
नई रचनाएँ-
अपनी धरती
दुखों से दोस्ताना
बंजरों में बहार
यों तो संबन्ध
हों ऋचाएँ वेद की
अंजुमन में-
उम्र कुछ इस तरह
घर में बैठे रहे
तेरी ज़िद
दो ग़ज़लें
धूल को चंदन
बागों में
बादल तितली धूप
मौत ज़िंदगी पर
भारी है
सिमटने की
हकीकत
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दुखों से दोस्ताना
दुखों से दोस्ताना हो गया है
तुम्हें देखे ज़माना हो गया है
खिलौनों के लिए रोता नहीं है
मेरा बेटा सयाना हो गया है
भरी महफ़िल में सच कहने लगा है
इसे रोको, दीवाना हो गया है
मुखौटा इक नया ला दो कहीं से
मेरा चेहरा पुराना हो गया है
कभी संकेत में कुछ कह दिया था
उसी का अब फ़साना हो गया है
२ अगस्त २०१०
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