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मौत ज़िंदगी पर भारी है

अंजुमन में-
घर में बैठे रहे
तेरी ज़िद
धूल को चंदन
बागों में

सिमटने की हकीकत

 

 

 

  धूल को चंदन

धूल को चंदन, ज़मीं को आसमाँ कैसे लिखें?
मरघटों में ज़िंदगी की दास्तां कैसे लिखें?

खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
उँगलियों से ख़ून छलके, मेंहदियाँ कैसे लिखें?

हर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
बाँसुरी कैसे लिखें, शहनाइयाँ कैसे लिखें?

कुछ मेहरबानों के हाथों कल ये बस्ती जल गई,
इस धुएँ को घर के चूल्हे का धुआँ कैसे लिखें?

दूर तक काँटे ही काँटे, फल नहीं, साया नहीं।
इन बबूलों को भला अमराइयाँ कैसे लिखें

रहजनों से तेरी हमदर्दी का चरचा आम है,
मीर जाफ़र! तुझको मीर-ऐ-कारवाँ कैसे लिखें?

८ दिसंबर २००८

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