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पत्र व्यवहार का पता

  १९. ३. २०१२

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1माँ हमारी

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माँ हमारी सदानीरा नदी जैसी

महक है वह
फूल वन की
सघन मीठी छाँव जैसी
घने कोहरे में
सुनहरी रोशनी के
ठाँव जैसी
नेह का अमरित पिलाती
माँ हमारी है गंभीरा नदी जैसी

सुबह मिलती
धूप बन कर
शाम कोमल छाँव हो कर
रात भर
रहती अकेली
वह अंधेरों के तटों पर
और रहती सदा हँसती
माँ हमारी महाधीरा नदी जैसी

एक मंदिर
ढाई आखर का
उसी की आरती वह
रोज़ नहला
नेहजल से
हम सभी को तारती वह
हर तरफ़ विस्तार उसका
माँ हमारी सिंधुतीरा नदी जैसी

- कुमार रवींद्र

इस सप्ताह
मातृ दिवस के अवसर

गीतों में-

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कुमार रवीन्द्र

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अवनीश सिंह चौहान

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यश मालवीय

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कौशलेन्द्र

छंदमुक्त में-

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राजेश जोशी

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रेखा राजवंशी

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शबनम शर्मा

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सुषम बेदी

हाइकु में-

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कल्पना रामानी

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भावना कुंअर

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भावना सक्सेना

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डॉ. रमा द्विवेदी

क्षणिकाओं में-

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सीमा

इसके अतिरिक्त

अंजुमन में-

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राजेन्द्र पासवान घायल

छंदमुक्त में-

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अश्विन गांधी

गौरवग्रंथ में

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जानकी मंगल

पुनर्पाठ में-

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अनूप भार्गव

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
 
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